चौबीसी चालीसा

शुद्ध भाव से करके धारण, मन में चौबीसी भगवान।

निज आतम को करके पावन, निषदिन करुं प्रभु गुणगान।।


जय आदिनाथ जिनवर महान। सृष्टि के आदि में दिया ज्ञान।।

जय अजितनाथ वसु कर्म जीत। पहुँचे शिवपुर कर आत्म प्रीत।।


जय संभवभव-दुख करें नष्ट। जीते निज बल से कर्म अष्ट।।

जय अभिनंदन जगमग रंजन। तुमने मेटे भवदुख क्रन्दन।।


जय सुमति नाथ दो सुमति दान। हो ज्ञान-भानु तुम उदीयमान।।

जय पद्‌मप्रभु पद्मेश परम। जय जगबंधु सर्वेश जिनम्।।


जय-जय सुपार्श्वनाथ शुद्ध-बुद्ध। भवि हुए देशना से प्रबुद्ध।।

जय चंद्र प्रभु साक्षत् चंद्र। नित परिजन संग पूजें सुरेन्द्र।।


जय पुष्पदंत तारण हारे। जय सुविधिनाथ विधि करतारे।।

जय शीतलनाथ सुशीतल हैं। जय अनंत सुखामृत परिमल हैं।।


जय श्रेयांशनाथ बहु श्रेयमान। जग ने पाया तुममें सुज्ञान।।

जय वासुपूज्य तुम पूज्यनीय। हो प्रथम बालयति वंदनीय।।


जय विमलनाथ परिपूर्ण विमल। तुम रहित कर्ममल सिद्ध निकल।।

जय अनंतनाथ हैं गुण अनंत। जग के कष्टों का किया अन्त।।


जय धर्म धुरंधरपरम धर्म। तुममें प्रगटें लक्षण सुधर्म।।

जय शांतिनाथ सुख शांति देत। संकट हरते प्रभु गुण निकेत।।


जय कुंथुनाथ कुन्थवादि रक्ष। तुम दीनबंधु हो जग प्रत्यक्ष।।

जय अरहनाथ कर्मारिहन्त। शत् नमन करें नित मुनिमहन्त।।


जय मल्लिनाथ मोह मल विनाश। किये छः दिन में चतु कर्मनाथ।।

जय मुनिसुव्रत दयाल। हो क्षीणमोह तुम कृपापाल।।


जय-जय जिनेश नमिनाथ। जय मिथिलापुर भूपेश नमो।।

जय नेमिनाथ प्रभु गुणनिधान। गिरनार शिखर से सिद्ध जान।।


जय पारसनाथ अनाथ-नाथ। तुम दीन दुखी करते सनाथ।।

जय सन्मति-सन्मति दायक हो। सब लोकलोक के ज्ञायक हो।।


चौबीसों जिनराज का, वन्दन करो त्रिकाल।

अरुणा पूर्ण हो कामना, उनकी कृपा विषाल।।


जापः-ऊँ ह्रीं सर्वग्रहारिष्टनिवारक चतुष्विषंति जिनेंद्राय नमो नमः।।