सरब परव में बड़ो अढाई परव हैं ।
नंदीश्वर सुर जाहिं लेय वासु दरब हैं ।।
हमें शक्ति सो नाहिं इहाँ करी थापना ।
पूजे जिनग्रह-प्रतिमा हैं हित आपना ।।
ॐ ह्रीं श्री-नंदीश्वर-द्वीपे द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमा-समूह !
अत्र अवतर अवतर संवौषट । अत्र तिष्ठ ठ: ठ: । अत्र मम सन्निहितो भवभव वषट ।
कंचन मणि मय श्रृंगार, तीरथ-नीर भरा ।
तिहूँ धार दई निरवार, जामन मरण जरा ।।
नंदीश्वर-श्रीजिन-धाम, बावन पुंज करों ।
वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद-भाव धरों ।।
नंदीश्वर द्वीप महान, चारो दिशि सोहे ।
बावन जिन मन्दिर जान, सुरनर मन मोहें ।।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो जन्म-जरा-मृत्यु विनाशनाये जलं निर्वपामीति स्वाहा ।।१।।
भव-तप-हर शीतल वास,सो चन्दन नाही ।
प्रभु यह गुण कीजै साँच, आयो तुम ठाहीं ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो संसार-ताप-विनाशनाये चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।।२।।
उत्तम अक्षत जिनराज, पुंज धरे सोहे ।
सब जीते अक्ष समाज तुम सम अरु को हैं ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो अक्षय-पद-प्राप्ताये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।।३।।
तुम काम विनाशक देव, ध्याऊं फुलनसौं ।
लहूँ शील लच्छमी एव, छुटू सुलनससौ ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो काम-बाण विध्वंसनाये पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।।४।।
नेवज इन्द्रिय बलकार, सो तुमने चुरा ।
चरू तुम ढिग सोहे सार, अचरज हैं पूरा ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो क्षुधा-रोग विनाशनाये नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।५।।
दीपक की ज्योति-प्रकाश, तुम तन मांहि लसै ।
टूटे करमन की राश, ज्ञान-कणी दरशै ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो मोहान्धकार विनाशनाये दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।।६।।
कृष्णागरु-धुप-सुवास, दश-दिशि नारि वरे ।
अति हर्ष भाव परकाश, मानो नृत्य करें ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो अष्टकर्म दहनाये धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।।७।।
बहु विधि फल ले तिहूँ काल, आनन्द नाचत हैं ।
तुम शिव फल देहु दयाल, तुहि हम जाचत हैं ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो महा-मोक्ष-फल प्राप्ताये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।।८।।
यह अरघ कियो निज-हेत, तुमको अरपतु हों ।
‘धानत’ किज्यो शिव खेत, भूमि समर्पत हो ।। नंदी...
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो अनर्घ-पद-प्राप्ताये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा ।।९।।
।।जयमाला।।
कार्तिक फाल्गुन साढ़के अन्त आठ दिन माहि ।
नंदीश्वर सुर जात हैं, हम पूजे इह ठाहीं ।।
एक सौ त्रेसठ कोडी जोजन महा ।
लाख चौरसिया एक दिश में लहा ।।
आठमो द्वीप नंदीश्वर भास्वरं ।
भौंन बावन प्रतिमा नमो सुखकरं।।
चार दिशि चार अन्जनगिरी राजही।
सहस चौरसिया एक दिश छाजाहि ।।
ढोल सम गोल ऊपर तले सुन्दर ।। भौंन...
इक इक चार दिशि चार शुभ बावरी ।
एक इक लाख जोजन अमल-जल भरी ।।
चहुँ दिशा चार वन लाख जोजन वरं ।। भौन...
सोल वापीन मधि सोल गिरी दधिमुख।
सहस दश महा जोजन लखत ही सुखं ।।
बावरी कौन दो माहि दो रतिकर ।। भौन...
शैल बत्तीस एक सहस जोजन कहे ।
चार सोले मिले सर्व बावन लहे ।।
एक इक सीस पर एक जिनमन्दिर।। भौन...
बिम्ब अठ एक सौ रत्नमयी सोहही।
देव देवी सरव नयन मन मोहही ।।
पांच से धनुष ताम पद्म-आसन परं ।। भौन...
लाल-नख-मुख नयन श्याम अरु श्वेत हैं ।
श्याम-रंग भौह सिर-केश छवि देत हैं ।।
वचन बोलत मनों हसत कालुष हरम ।।भौन...
कोटि-शशि भानु दुति-तेज छिप जात हैं ।
महा-वैराग-परिणाम ठहरात हैं ।।
वचन नहिं कहैं लखि होत सम्यक धरं ।
भौंन बावन प्रतिमा नमो सुखकरं ।।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण-दिश द्वी-पंचाश-ज्जिनालयस्थ-जिन-प्रतिमाभ्यो जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
नंदीश्वर द्वीप अर्घ
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिणे चार अन्जनगिरी, सोलह दधिमुख, बत्तीस रतिकर, बावन पर्वत स्थिते बावन जिनचैत्यालयेभ्यो पांच हजार छह सौ सोलह जिन बिम्बेभ्यो पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
नंदीश्वर-जिन धाम, प्रतिमा-महिमा को कहै ।
‘धानत’ लीनो नाम, यही भगति शिव-सुख करे ।।
इत्याशिर्वाद: ।। पुष्पांजलि क्षिपेत ।।