तप तुरंग असवार धार, तारन विवेक कर ।
ध्यान शुकल असिधार शुद्ध सुविचार सुबखतर ।
भावन सेना, धर्म दशों सेनापति थापे ।
रतन तीन धरि सकति, मंत्रि अनुभो निरमापे ।
सत्तातल सोहं सुभटि धुनि, त्याग केतु शत अग्र धरि ।
इहविध समाज सज राज को, अर जिन जीते कर्म अरि ।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
कनमनिमय झारी, दृग सुखकारी, सुर सरितारी नीर भरी ।
मुनिमन सम उज्ज्वल, जनम जरादल, सो ले पदतल धार करी ।
प्रभु दीन दयालं, अरिकुल कालं, विरद विशालं सुकुमालं ।
हरि मम जंजालं, हे जगपालं, अरगुन मालं, वरभालं ।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.स्वाहा
।।१।।
भवताप नशावन, विरद सुपावन, सुनि मन भावन, मोद भयो ।
तातैं घसि बावन, चंदनपावन, तुमहिं चढ़ावन, उमगि अयो ।प्रभु
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि.स्वाहा ।।२।।
तंदुल अनियारे, श्वेत सँवारे, शशिदुति टारे, थार भरे ।
पद अखय सुदाता, जगविख्याता, लखि भवत्राता पुंजधरे । प्रभु...
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.स्वाहा
।।३।।
सुरतरु के शोभित, सुरन मनोभित, सुमन अछोभित ले आयो ।
मनमथ के छेदन, आप अवेदन, लखि निरवेदन गुन गायो ।प्रभु...
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.स्वाहा
।।४।।
नेवज सज भक्षक प्रासुक अक्षक, पक्षक रक्षक स्वक्ष धरी ।
तुम करम निकक्षक, भस्म कलक्षक, दक्षक पक्षक रक्ष करी
। प्रभु...
दीन दयालं, अरिकुल कालं, विरद विशालं सुकुमालं ।
हरि मम जंजालं, हे जगपालं, अरगुन मालं, वरभालं ।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि.स्वाहा
।।५।।
तुम भ्रमतम भंजन मुनिमन कंजन, रंजन गंजन मोह निशा ।
रवि केवलस्वामी दीप जगामी, तुम ढिग आमी पुण्य दृशा ।प्रभु...
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि.स्वाहा
।।६।।
दशधूप सुरंगी गंध अभंगी वह्वि वरंगी माहिं हवें ।
वसुकर्म जरावें धूम उड़ावें, ताँडव भावें नृत्य पवें ।प्रभु...
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि.स्वाहा ।।७।।
रितुफल अतिपावन, नयन सुहावन, रसना भावन, कर लीने ।
तुम विघन विदारक, शिवफलकारक, भवदधि तारक चरचीने ।प्रभु...
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि.स्वाहा ।।८।।
सुचि स्वच्छ पटीरं, गंधगहीरं, तंदुलशीरं, पुष्प-चरुं ।
वर दीपं धूपं, आनंदरुपं, ले फल भूपं, अर्घ करुं ।प्रभु...
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि.स्वाहा ।।९।।
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
फागुन सुदी तीज सुखदाई, गरभ सुमंगल ता दिन पाई ।
मित्रादेवी उदर सु आये, जजे इन्द्र हम पूजन आये ।
ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला तृतीयायां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीअरअर्घ्यं नि.स्वाहा
।।१।।
मँगसिर शुक्ल चतुर्दशि सोहे, गजपुर जनम भयो जग मोहे ।
सुर गुरु जजे मेरु पर जाई, हम इत पूजें मनवचकाई ।
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला चतुर्दश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय
श्रीअरअर्घ्यं नि.स्वाहा ।।२।।
मंगसिर सित दसमी दिन राजे, ता दिन संजम धरे विराजै ।
अपराजित घर भोजन पाई, हम पूजें इत चित हरषाई ।
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला दशम्यां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीअरअर्घ्यं
नि.स्वाहा ।।३।।
कार्तिक सित द्वादशि अरि चूरे, केवलज्ञान भयो गुन पूरे ।
समवसरन तिथि धरम बखाने, जजत चरन हम पातक भाने ।
ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ला द्वादश्यां ज्ञानमंगलप्राप्ताय श्रीअरअर्घ्यं
नि.स्वाहा ।।४।।
चैत कृष्ण अमावसी सब कर्म, नाशि वास किय शिव-थल पर्म ।
निहचल गुन अनंत भंडारी, जजौं देव सुधि लेहु हमारी ।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीअरअर्घ्यं
नि.स्वाहा ।।५।।
।।जयमाला।।
बाहर भीतर के जिते, जाहर अर दुखदाय ।
ता हर कर अर जिन भये, साहर शिवपुर राय ।।१।।
राय सुदरशन जासु पितु, मित्रादेवी माय ।
हेमवरन तन वरष वर, नव्वै सहस सुआय ।।२।।
जय श्रीधर श्रीकर श्रीपति जी, जय श्रीवर श्रीभर श्रीमति जी ।
भवभीम भवोदधि तारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं ।।३।।
गरभादिक मंगल सार धरे, जग जीवनि के दुखदंद हरे ।
कुरुवंश शिखामनि तारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।४।।
करि राज छखंड विभूति मई, तप धारत केवलबोध ठई ।
गण तीस जहाँ भ्रमवारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।५।।
भविजीवन को उपदेश दियो, शिवहेत सबै जन धारि लियो ।
जग के सब संकट टारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।६।।
कहि बीस प्ररुपन सार तहाँ, निजशर्म सुधारस धार जहाँ ।
गति चार ह्रषीपन धारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।७।।
षट काय तिजोग तिवेद मथा, पनवीस कषा वसु ज्ञान तथा ।
सुर संजम भेद पसारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।८।।
रस दर्शन लेश्या भव्य जुगं, षट सम्यक् सैनिय भेद युगं ।
जुग हारा तथा सु अहारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।९।।
गुनथान चतुर्दस मारगना, उपयोग दुवादश भेद भना ।
इमि बीस विभेद उचारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।१०।।
इन आदि समस्त बखान कियो, भवि जीवनि ने उर धार लियो ।
कितने शिववादिन धारन हैं, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।११।।
फिर आप अघाति विनाश सबै, शिवधाम विषैं थित कीन तबै ।
कृतकृत्य प्रभू जगतारन हैं अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।१२।।
अब दीनदयाल दया धरिये, मम कर्म कलंक सबै हरिये ।
तुमरे गुन को कछु पार न है, अरनाथ नमौं सुखकारन हैं ।।१३।।
जय श्रीअरदेवं, सुरकृतसेवं समताभेवं, दातारं ।
अरिकर्म विदारन, शिवसुखकारन, जयजिनवर जग त्रातारं ।
ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेंद्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
अर जिन के पदसारं, जो पूजै द्रव्य भाव सों प्राणी ।
सो पावै भवपारं, अजरामर मोक्षथान सुखखानी ।
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)