श्री मुनिसुव्रतनाथजी जिन पूजा

प्रानत स्वर्ग विहाय लियो जिन, जन्म सु राजगृहीमहँ आई ।

श्री सुहमित्त पिता जिनके, गुनवान महापदमा जसु माई ।।

बीस धनू तनु श्याम छवी, कछु अंक हरी वर वंश बताई ।

सो मुनिसुव्रतनाथ प्रभू कहँ थापतु हौं इत प्रीत लगाई ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।


उज्ज्वल सुजल जिमि जस तिहांरो, कनक झारीमें भरौं ।

जरमरन जामन हरन कारन, धार तुम पदतर करौं ।।

शिवनाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगुन माल हैं ।

तसु चरन आनन्दभरन तारन, तरन, विरद विशाल हैं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि.स्वाहा ।।१।।


भवतापघायक शान्तिदायक, मलय हरि घसि ढिग धरौं ।

गुनगाय शीस नमाय पूजत, विघनताप सबैं हरौं ।।

शिवनाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगन माल हैं ।

तसु चरन आनन्दभरन तारन तरन, विरद विशाल हैं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि.स्वाहा ।।२।।


तंदुल अखण्डित दमक शशिसम, गमक जुत थारी भरौं ।

पद अखयदायक मुकति नायक, जानि पद पूजा करौं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.स्वाहा ।।३।।


बेला चमेली रायबेली, केतकी करना सरौं ।

जगजीत मनमथहरन लखि प्रभु, तुम निकट ढेरी करौं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.स्वाहा ।।४।।


पकवान विविध मनोज्ञ पावन, सरस मृदुगुन विस्तरौं ।

सो लेय तुम पदतर धरत ही छुधा डाइन को हरौं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि.स्वाहा ।।५।।


दीपक अमोलिक रतन मणिमय, तथा पावन घृत भरौं ।

सो तिमिर मोहविनाश आतम भास कारण ज्वै धरौं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि.स्वाहा ।।६।।


करपूर चन्दन चूर भूर, सुगन्ध पावक में धरौं ।

तसु जरत जरत समस्त पातक, सार निज सुख को भरौं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि.स्वाहा ।।७।।


श्रीफल अनार सु आम आदिक पक्वफल अति विस्तरौं ।

सो मोक्ष फल के हेत लेकर, तुम चरण आगे धरौं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि.स्वाहा ।।८।।


जलगंध आदि मिलाय आठों दरब अरघ सजौं वरौं ।

पूजौं चरन रज भगतिजुत, जातें जगत सागर तरौं ।।

शिवसाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगुन माल हैं ।

तसु चरन आनन्दभरन तारन तरन, विरद विशाल हैं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि.स्वाहा ।।९।।


पंच कल्याणक अर्घ्यावली

तिथि दोयज सावन श्याम भयो, गरभागम मंगल मोद थयो ।

हरिवृन्द सची पितु मातु जजें, हम पूजत ज्यौं अघ ओघ भजें ।।

ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णा द्वितीयायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीमुनिअर्घ्यं नि.स्वाहा ।।१।।


बैसाख बदी दशमी वरनी, जनमे तिहिं द्योस त्रिलोकधनी ।

सुरमन्दिर ध्याय पुरन्दर ने, मुनिसुव्रतनाथ हमैं सरनै ।।

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा दशम्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमुनिअर्घ्यं नि.स्वाहा ।।२।।


तप दुद्धर श्रीधर ने गहियो, वैशाख बदी दशमी कहियो ।

निरुपाधि समाधि सुध्यावत हैं, हम पूजत भक्ति बढ़ावत हैं ।।

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा दशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीमुनिअर्घ्यं नि.स्वाहा ।।३।।


वर केवलज्ञान उद्योत किया, नवमी वैसाख वदी सुखिया ।

धनि मोहनिशाभनि मोखमगा, हम पूजि चहैं भवसिन्धु थगा ।।

ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णानवम्यां केवलज्ञानमंडिताय श्रीमुनिअर्घ्यं नि.स्वाहा ।।४।।


वदि बारसि फागुन मोच्छ गये, तिहुं लोक शिरोमणी सिद्ध भये ।

सु अनन्त गुनाकर विघ्न हरी, हम पूजत हैं मनमोद भरी ।।

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा द्वादश्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमुनिअर्घ्यं नि.स्वाहा ।।५।।


।।जयमाला।।

मुनिगण नायक मुक्तिपति, सूक्त व्रताकर युक्त ।

भुक्ति मुक्ति दातार लखि, वन्दौं तन-मन युक्त ।।१।।


जय केवल भान अमान धरं, मुनि स्वच्छ सरोज विकास करं ।

भव संकट भंजन लायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।२।।


घनघात वनं दवदीप्त भनं, भविबोध त्रषातुर मेघघनं ।

नित मंगलवृन्द वधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।३।।


गरभादिक मंगलसार धरे, जगजीवन के दुखदंद हरे ।

सब तत्व प्रकाशन नायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।४।।


शिवमारग मण्डन तत्व कह्यो, गुनसार जगत्रय शर्म लह्यो ।

रुज रागरू दोष मिटायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।५।।


समवस्रत में सुरनार सही, गुनगावत नावत भाल मही ।

अरु नाचत भक्ति बढ़ायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।६।।


पग नूपुर की धुनि होत भनं, झननं झननं झननं झननं ।

सुरलेत अनेक रमायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।७।।


घननं घननं घन घंट बजें, तननं तननं तनतान सजें ।

दृमदृम मिरदंग बजायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।८।।


छिन में लघु औ छिन थूल बनें, जुत हावविभाव विलासपने ।

मुखतें पुनि यों गुनगायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।९।।


धृगतां धृगतां पग पावत हैं, सननं सननं सु नचावत हैं ।

अति आनन्द को पुनि पायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।१०।।


अपने भव को फल लेत सही, शुभ भावनि तें सब पाप दही ।

तित तैं सुख को सब पायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।११।।


इन आदि समाज अनेक तहां, कहि कौन सके जु विभेद यहाँ ।

धनि श्री जिनचन्द सुधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।१२।।


पुनि देश विहार कियो जिन ने, वृष अमृतवृष्टि कियो तुमने ।

हमको तुमरी शरनायक है, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।१३।।


हम पै करुनाकरि देव अबै, शिवराज समाज सु देहु सबै ।

जिमि होहुं सुखाश्रम नायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।१४।।


भवि वृन्दतनी विनती जु यही, मुझ देहु अभयपद राज सही ।

हम आनि गही शरनायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत दायक हैं ।।१५।।


घत्ताः- जय गुनगनधारी, शिवहितकारी, शुद्धबुद्ध चिद्रुप पती ।

परमानंददायक, दास सहायक, मुनिसुव्रत जयवंत जती ।।१६।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेंद्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


दोहाः- श्रीमुनिसुव्रत के चरन, जो पूजें अभिनन्द ।

सो सुरनर सुख भोगि के, पावें सहजानन्द ।

इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)