विसर्जन

बिन जाने वा जान के, रही टूट जो कोय।

तुम प्रसाद तें परम गुरु, सो सब पूरन होय।।

पूजन विधि जानूँ नहीं, नहिं जानूँ आह्वान।

और विसर्जन हूँ नहीं, क्षमा करो भगवान।।

मंत्रहीन धनहीन हूँ, क्रियाहीन जिनदेव ।

क्षमा करहु राखहु मुझे, देहु चरण की सेव ।।


ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं हः अ सि आ उ सा पूजा विधि विसर्जनं करोमि जः जः जः । अपारधम क्षमापनं भवतु भूवात्पुनर्दर्शनम ।

इत्याशीर्वाद