ऋषभ देव जिन सिद्ध हूूए, गिरि कैलाश से जोय । मन वच तन कर पूजहूूँ, शिखर नमूं पद दोय ।।
ओ ह्रीं श्री ऋषभनाथ जिनेंद्रादी १० हजार मुनी कैलाश पर्वत से मोक्ष गये तिनके चरणारबिंद को मेरा मन वचन काय से बारंबार नमस्कार हो ।