धर्मनाथ जिनराज का,
कूट सुदत वर जेह ।
मन वच तन कर पूजहूूँ,
शिखर सम्मेद यजेह ।।
ओं ह्रीं श्री धर्मनाथ जिनेंद्रादी मुनी २९ कोड़ा कोड़ी १९ करोड़ ९ लाख ९ हजार ७९५ मुनी सिद्ध भये तिनके चरणारबिंद को मेरा मन वचन काय से बारंबार नमस्कार हो ।