जिनवाणी स्तुति जिनवर जिनवाणी नो भण्डार

जिनवर जिनवाणी नो भण्डार, वंदन करिए बारम्बार ।।


श्री अरिहंत वाणी नो सार, गौतम स्वामी गुंथे छे माल ।

कुंद कुंद स्वामी रचनार, वंदन करिए ।।


चौदह पूरब नो छे सार, ॐ कार धुनी नो छे भण्डार ।

जिनवाणी जिन तारण हार, वंदन करिए ।।


गुंथा पाहुऊ समय सार, मूलाचार छे मुनियों नो सार ।

रत्न करंड रत्नों नो भण्डार, वंदन करिए ।।


मिथ्यात्म अने राग ने द्वेष, कषाय ने तू करिए न लेश ।

विषय विष नो छे भण्डार, वंदन करिए ।।


वीर वाणी नो एकज सार, स्व नि स्व पर ने पर जान ।

आतम अनन्त ज्ञान भण्डार, वंदन करिए ।।


लाखों जीवों नी तारण हार, मयंक विनये बारम्बार ।

अनेकांत स्यादवाद प्रकाश, वंदन करिए ।।