शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर में मुख्यरूप से बीसपंथी - तेरहपंथी कोठी के साथ-साथ पिछले २५-३० वर्षों से अनेक नवनिर्माणों के द्वारा भारी विकास कार्य हुआ है। पूज्य आचार्यश्री विमलसागर जी महाराज की प्रेरणा से समवसरण मंदिर, तीस चौबीसी मंदिर आदि के विशाल निर्माण, गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी की प्रेरणा से मध्यलोक शोध संस्थान, आचार्य श्री संभवसागर महाराज की प्रेरणा से त्रियोग आश्रम, आचार्यश्री सुमतिसागर महाराज की प्रेरणा से त्यागी-व्रती आश्रम आदि निर्माणों के साथ वहाँ अनेक दि. जैन संस्थाएँ अपने-अपने नवनिर्माण आदि कार्यकलापों के द्वारा सिद्धक्षेत्र की गरिमा वृद्धि में अपना सक्रिय योगदान प्रदान कर रही हैं। इसी श्रृंखला में पर्वतराज के चौपड़ा कुण्ड पर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर एवं धर्मशाला यात्रियों के लिए विशेष सुविधा प्रदान करते हुए यात्रा के आनंद को द्विगुणित कर देते हैं ।
सन् २००३ में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती | माताजी ने पावन तीर्थ सम्मेदशिखर के इतिहास में एक नया अध्याय और जोड़ दिया । माताजी ने वहाँ पर भगवान ऋषभदेव की विशाल प्रतिमा एवं मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी । भगवान बाहुबली एवं चौबीसी मंदिर के परिसर में बाहर की ओर निर्मित इस मंदिर का निर्माण कराने का पुण्यलाभ डॉ. पन्नालाल जैन पापड़ीवाल- पैठण (महाराष्ट्र) परिवार को प्राप्त हुआ है। वर्तमान में यह निर्माण कार्य पूर्ण होकर दिसम्बर २००५ में पूज्य ज्ञानमती माताजी के शिष्य जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर के पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज एवं अध्यक्ष कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन के पावन सानिध्य में सवा नौ फुट ऋषभदेव प्रतिमा जी की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भी सम्पन्न हो चुका है। निश्चित ही यह भव्य और मनोज्ञ प्रतिमा प्रत्येक दर्शक को जैनधर्म की प्राचीनता एवं भगवान आदिनाथ के जीवन का स्मरण कराती रहेगीत ।
शास्त्रों में तो शिखर जी की वंदना का फल बताते हुए कहा है कि व्यक्ति इस पर्वत की वंदना करके अधिकतम ४६ भव धारण करने के बाद मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। ऐसे पावन सिद्धधाम शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर को कोटि-कोटि नमन ।