भगवान पार्श्वनाथ की टोंक से वापस लौटते समय विशेष कठिनाई नहीं होती। क्योंकि उतराई है और मार्ग ठीक है। बीच-बीच में जंगल में पगडण्डियाँ भी जाती हैं। यदि उन पर चला जाये तो लगभग डेढ़ मील की यात्रा बच जाती है। किन्तु पगडण्डियों पर चलना बहुत कठिन है । रास्ता भूलने का भी डर है। यदि भील (मजदूर) साथ हो तो फिर कोई डर नहीं । इस समय लाठी से बड़ी सहायता मिलती है।
जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर शून्य है उसी प्रकार श्री सम्मेदशिखर के बिना दिगम्बर जैन समाज शून्य है। शिखर जी हमारा ऐसा पवित्र तीर्थ है जहाँ से इस ‘हुण्डावसर्पिणी काल’ में हमारे २४ तीर्थंकरों में से २० तीर्थंकरों एवं असंख्यात मुनिवरों ने मोक्ष प्राप्त किया है। इसलिए शिखर जी हमारी संस्कृति और धर्म की धरोहर है। उसका एक-एक कण हम सभी के लिए पूज्यनीय एवं वंदनीय है।
जैन समाज के इस सर्वप्रमुख शाश्वत तीर्थ की व्यवस्था जहाँ स्थानीय संस्थाएँ देखती हैं, वहीं भारतवर्षीय दिगम्बरा जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के द्वारा इसका विशेष प्रबंध देखा जाता है। वह कमेटी पिछले कई वर्षों से श्वेताम्बर सम्प्रदाय के साथ सम्मेदशिखर के विषय में मतभिन्नता का सामना कर रही है। उनके अनुसार कुछ तथ्य यहाँ प्रस्तुत हैं-
इस तीर्थराज पर एवं अन्य कई क्षेत्रों पर श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजकों एवं अन्य धर्मावलंबियों द्वारा शाम-दाम-दण्ड-भेद से नये-नये षड्यंत्र रचकर हमें अपने अधिकारों से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है। विशेषकर सम्मेदशिखर जी के बारे में श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों द्वारा नये-नये विवाद उत्पन्न करके दिगम्बर जैन समाज के अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है। इस निवेदन के माध्यम से हम समाज को उनके द्वारा पूर्व में किये गये घातक षड्यंत्रों की कुछ झलकियाँ देना चाहते हैं, ताकि आप सभी श्वेताम्बरों के कुटिल इरादों से परिचित हो सके-
१. सन् १९७२ में शिखर जी पर उन ४ तीर्थंकरों की नई टोंके निर्मित कर दी गई जो वहाँ से मोक्ष नहीं गये थे। यह शिखर जी के प्राचीन मूल स्वरूप को बदलने की बहुत बड़ी साजिश थी।
२. सन् १९०० में वंदना पथ पर हमारे द्वारा बनाई गई करीब २५० सीढ़ियों को इनके इशारे पर इनके आदमियों ने रातों-रात तोड़ डाला, ताकि हमारा कोई अधिकार पहाड़ पर न रहे। इसका फौजदारी मुकदमा चला, जिसमें इनके आदमियों को सजा भी हुई।
३. इन्होंने मुगल बादशाह अकबर के तथाकथित झूठे फरमानों के आधार पर शिखरजी के मालिकाना अधिकार का दावा करते हुए फरमानों की नकलों को कोर्ट में प्रस्तुत किया परन्तु वे ओरिजनल नहीं होने से पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दिनाँक १४-०४-१९२१ को जालसाजी करार दिया । यह उल्लेखनीय है कि श्वेताम्बरों द्वारा श्री ऋषभदेव (केसरिया जी), तारंगाजी क्षेत्र, शत्रुंजय - पालीताना में भी इन जाली फरमानों का उपयोग किया गया था ।
४. सन् १९२९ में श्वेताम्बरों ने शिखरजी पर्वत पर जाने के मुख्य मार्ग पर लोहे का गेट बनाकर वहाँ वॉचमैन रखना चाहा और कहा कि बिना उनकी इजाजत के दिगम्बरों को पूजा करने का अधिकार नहीं है, जिसे कोर्ट ने निरस्त करते हुए सभी टोंक २४ घंटे खुले रखने का आदेश दिया। उन्होंने चरणचिन्हों पर वरक तथा केशर लगाना प्रारंभ किया जिसको लेकर पूजा केस लंदन की प्रिव्ही काउन्सिल में चला । कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि सभी २१ टोंकों पर दिगम्बर आम्नाय के चरणचिन्ह विराजमान हैं । अतएव उन्हें दर्शन-पूजन से रोकने का किसी को अधिकार नहीं है । परन्तु उनकी रख-रखाव के बारे में हमारी ओर से उस समय कोई ठोस सबूत नहीं दे सकने से रख-रखाव का अधिकार उनका ही रहा, जो बिहार जमींदारी उन्मूलन कानून (बिहार लैण्ड रिफार्म्स एक्ट, १९५३) के लागू होने से समाप्त हो गया। इसके पश्चात् श्वेताम्बरों ने सन् १९६५ में बिहार सरकार से एक एग्रीमेंट कर लिया और खनिज एवं वन सम्पत्ति का ४० प्रतिशत सरकार को छोड़कर ६० प्रतिशत स्वयं लेने लगे ।
५. बिहार सरकार एवं आनंद जी कल्याण जी ट्रस्ट के बीच हुए एग्रीमेंट से अपनी समाज को चिंता हुई। उस समय समाज के नेता साहू शांतिप्रसाद जैन थे। उनके प्रयत्नों से ६ अगस्त १९६६ को भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी एवं बिहार सरकार के बीच एक एग्रीमेंट करवा लिया गया । दिगम्बरों के साथ हुए सरकार के एग्रीमेंट के अनुसरण में शिखरजी पहाड़ पर कुंथुनाथ टोंक के पास धर्मशाला बनाने के लिए कमेटी की ओर से एक टीन शेड धर्मशाला के रूप में लगाया गया । २६ जनवरी १९६७ को आनंदजी कल्याणजी के आदमियों ने उसे रातों-रात तोड़ डाला और उसका सामान भी उठा ले गये, जिसके लिए फौजदारी केस हुआ और उनके आदमियों को जुर्माना व सजा भी हुई।
इस प्रकार हमने एक कुटिल प्रयासों को विफल करते हुए मुकदमों में अपनी जीत हासिल की। लम्बे समय से चले आ रहे शिखरजी तीर्थ के विवाद का ऐतिहासिक फैसला तब हुआ जब पटना हाईकोर्ट की राँची बेंच के न्यायमूर्ति श्रीमान पी. के. देव ने अपने १ जुलाई १९९७ के फैसले में श्वेताम्बरों के मंसूबों को करारा झटका दिया। इस फैसले के मुख्य अंश इस प्रकार हैं-
१. कोर्ट ने कहा कि आनंद जी कल्याण जी ट्रस्ट के नाम से कोई भी ट्रस्ट बिहार में रजिस्टर्ड नहीं है, इसलिए पारसनाथ पहाड़ से सेठ आनंदजी कल्याणकजी (श्वेताम्बर फर्म) - अहमदाबाद के मालिकाना अधिकार के सभी दावे खारिज किए जाते हैं ।
२. कोर्ट ने यह भी कहा कि ये लोग (आनंदजी कल्याणजी) शिखर के टोंकों से चढ़ावा तो उठाते थे किन्तु उन्होंने पिछले सौ वर्षों में एक रुपया भी शिखरजी की व्यवस्था एवं विकास के लिए नहीं लगाया । वहाँ की राशि अन्य श्वेताम्बर तीर्थों में ले जाकर खर्च की। अतएव उन्हें मैनेजमेंट का अधिकार नहीं हैं और इनके प्रबंध एवं नियंत्रण के सभी दावे रद्द किये जाते हैं ।
३. इस निर्णय में उस फैसले का विशेष उल्लेख किया गया है जिसमें प्रिव्ही काउंसिल ने २१ प्राचीन टोंके (२० तीर्थंकरों की तथा एक गौतम गणधर स्वामी की) दिगम्बर आम्नाय की मानी हैं। एवं केवल ४ नई टोंके श्वेताम्बर आम्नाय की मानी हैं।
४. निर्णय में दिगम्बर जैन यात्रियों के लिए पर्वत पर नयी धर्मशाला निर्माण करने की मांग न्यायसंगत ठहराई गई है और कहा गया है कि हमारा आवेदन आने पर राज्य सरकार हमें भूमि अवश्य उपलब्ध करावे। यह भी कहा है कि पर्वत की व्यवस्था हेतु बिहार सरकार द्वारा दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन समाज के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त कमेटी बनायी जावे जिसका अध्यक्ष जिला कलेक्टर हो ।
उपरोक्त निर्णय के विरुद्ध सेठ आनंदजी कल्याणजी फर्म ने राँची हाईकोर्ट की डबल बेंच के सामने अपील करते हुए उक्त निर्णय पर स्टे ऑर्डर की मांग की, जिसे कोर्ट ने अस्वीकृत कर दिया। तत्पश्चात् उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्टे आर्डर की मांग का, जिस सुप्रीम काट न भी खारिज कर दिया। डबल बेंच के अघोषित निर्णय के बाद यह मुकदमा रांची हाईकोर्ट की फुल बेंच ने सिंगल जज न्यायमूर्ति श्री पी.के. देव के फैसल को ही बरकरार रखा तथा कहा कि दिगम्बरों को पहाड़ पर धर्मशाला बनाने का अधिकार है और इनका आवेदन आने पर राज्य सरकार इन्हें भूमि अवश्य उपलब्ध करावे । इस प्रकार सत्य की जीत हुई ।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पिछले १०० वर्षों से चल रहे मुकदमों का पूरा खर्च भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी करती आई है। अब तक करीब २ करोड़ की राशि इन मुकदमों पर खर्च हुई है और उसके लिए उसने कभी भी समाज से अलग से धन एकत्रित करने की आवश्यकता महसूस नहीं की। कमेटी के पास जो ध्रुवफड है उसके ब्याज की आमदनी से कमेटी इन केसों को लड़ती रही है। अब राँची हाईकोर्ट की तीनों बेंचों के फैसले हमारे पक्ष में होने से श्वेताम्बर मूर्तिपूजक बौखलाये हुए हैं और वे येन-केन-प्रकारेण हमारे अधिकारों को समाप्त करने के प्रयास में जुटे हुए हैं।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारतवर्ष में जैनों की कुल जनसंख्या में से ७० प्रतिशत जनसंख्या दिगम्बरों की है, शेष ३० प्रतिशत में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, स्थानकवासी, तेरहपंथी आदि हैं। वे शत्रुंजय एवं पालीताना अधिक जाते हैं परन्तु श्री सम्मेदशिखर जी के मामले में वे पूरे सजग हैं। हमें यह भी ज्ञात हुआ है कि कई श्वेताम्बर भाईयों ने यह मंशा व्यक्त की है कि जैसे भी हो उन्हें शिखरजी केस की लड़ाई जीतनी है, रकम चाहे जो भी खर्च हो, उनकी देने की तैयारी है। यह हमारे समाज के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। अब शिखरजी की रक्षा कैसे की जावे यह हमारे लिए चिंतनीय विषय बन गया है। राँची हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में असंतुष्ट सेठ आनंदजी कल्याणजी फर्म- अहमदाबाद एवं श्वेताम्बर जैन सोसायटी, कोलकाता के प्रतिनिधियों ने शिखरजी पहाड़ के मैनेजमेंट के लिए कमेटी गठित किये जाने के राज्य सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग एस. एल. पी. फाइल की हैं। हमारी ओर से भी पिटीशनें, फाइल हुई हैं। ये सभी पिटीशनें अभी एडमिट नहीं हुई हैं परन्तु सप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश हुआ है कि केस की सुनवाई करने के बाद फैसला दे दिया जायेगा। श्वेताम्बर समाज सुप्रीम कोर्ट श्री फली नरिमन, श्री अरुण जेटली, श्री सिद्धार्थ शंकरराय, श्री मुकुल रोहतगी जैसे दिग्गज वकीलों को खड़ा करके शिखरजी केस का फैसला अपने पक्ष में कराने के प्रयास में लगा हुआ है। हमारा पक्ष सत्य के बल पर अभी तक विजयी होता आया है। अब यह लड़ाई आर-पार की लड़ाई है। इसलिए यह मौका हम भी नहीं खोना चाहते हैं । हमने अपनी ओर से भी वरिष्ठ एडवोकेट श्री हरीश सालवे, श्री अशोक देसाई एवं कुछ अन्य सीनियर एडवोकेट्स को आर्ग्युमेंट्स के लिए खड़ा करने का निर्णय लिया है। इनको सहयोग देने के लिए एडवोकेट श्री मनोज गोयल को भी इस कार्य में जोड़ा गया है। ऐसी संभावना की जा रही है कि यह केस कई दिनों तक चलेगा, जिसमें करोड़ों रुपये व्यय होने का अनुमान है। जब यह केस राँची हाईकोर्ट की, फुल बेंच के सामने १६ दिनों तक चला था तब अपनी ओर से करीब ६० लाख रुपये व्यय हुए थे।
श्री गिरनारजी, श्री शिखरजी दोनों ही केस सुनवाई पर आ गये हैं। श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ सिरपुर का केस भी सुप्रीम कोर्ट में फाइनल हियरिंग में है। श्री ऋषभदेव (केशरिया जी), श्री पावापुरी एवं श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथ क्षेत्र, बागूदार (भीलवाड़ा-राज.) के मुकदमें भी अलग–अलग न्यायालयों में विचाराधीन हैं । इन मुकदमों पर विपुल धनराशि व्यय होने की संभावना को देखते हुए तीर्थक्षेत्र कमेटी इसके लिए प्रथम बार दिगम्बर जैन समाज के सामने आई है और अपील करती है कि जिससे जितना भी संभव हो सके, तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी एवं अन्य क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए उदार हस्त से योगदान करें। कहीं ऐसा न हो कि धनाभाव के कारण हम केस की उचित पैरवी करने में असमर्थ हो जायें और अभी तक की जीती हुई लड़ाई हमें हारनी पड़े। यदि ऐसा होता है तो हमारी आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। हमारा समाज बहुत बड़ा समाज है । हमें पूर्ण विश्वास है कि समाज का हर व्यक्ति इस समस्या के लिए अवश्य सोचेगा और यथाशक्ति आर्थिक सहयोग करेगा।