अपनी सुधि भूल आप

अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ,
ज्यौं शुक नभचाल विसरि नलिनी लटकायो ॥

चेतन अविरुद्ध शुद्ध, दरश बोधमय विशुद्ध
तजि जड़-रस-फरस रूप, पुद्गल अपनायौ ।।१।।

इन्द्रियसुख दुख में नित्त, पाग राग रुख में चित्त
दायकभव विपति वृन्द, बन्धको बढ़ायौ ।।२।।

चाह दाह दाहै, त्यागौ न ताहि चाहै
समतासुधा न गाहै जिन, निकट जो बतायौ ।।३।।

मानुषभव सुकुल पाय, जिनवर शासन लहाय
`दौल' निजस्वभाव भज, अनादि जो न ध्यायौ ।।४।।