अपनी सुधि पाय आप

अपनी सुधि पाय आप, आप यों लखायो॥

मिथ्यानिशि भई नाश, सम्यक रवि को प्रकाश।
निर्मल चैतन्य भाव, सहजहिं दर्शायो ॥

ज्ञानावर्णादि कर्म, रागादि मेटे भर्म ।
ज्ञानबुद्धि तें अखंड, आप रूप थायो॥

सम्यकदृग ज्ञान चरण, कर्त्ता कर्मादि करण ।
भेदभाव त्याग के, अभेद रूप पायो ॥

शुक्लध्यान खड्‍ग धार, वसु अरि कीने संहार ।
लोक अग्र सुथिर वास, शाश्वत सुख पायो॥