भूल के अपना घर

भूल के अपना घर, जाने कितनों के घर, तुझको जाना पडा॥

इस जहां में कई घर बनाये तूने,
रिश्‍तेदारी सभी से निभाई तूने,
जिनके थे तुम पिता, फ़िर उन्हीं को पिता, तुझे बनाना पडा ॥

जो थी माता तेरी वो ही पत्नी बनी,
पत्नी से फ़िर तेरी भगिनी बनी,
रिश्‍ते करते रहे, हम बिछुडते रहे, ना ठिकाना मिला ॥

बनके थलचर तू सबलों से खाया गया,
बन के नभचर तू जालों फ़ंसाया गया।
नर्क पशुओं के गम, देख कर ये सितम तुझको रोना पडा॥

इस जहां की तो वधुऐं अनेकों वरीं,
मुक्ता रानी न अब तक तेरे मन बसी।
जिसने उसको वरा, इस जहां की धरा, पर ना आना पडा॥