चरणों में आ पड़ा हूँ

चरणों में आ पड़ा हूँ, हे द्वादशांग वाणी
मस्तक झुका रहा हूँ, हे द्वादशांग वाणी ।।

मिथ्यात्व को नशाया, निज तत्त्व को प्रकाशा
आपा-पराया-भासा, हो भानु के समानी ।।१।।

षट् द्रव्य को बताया, स्याद्वाद को जताया
भवफन्द से छुड़ाया, सच्ची जिनेन्द्र वाणी ।।२।।

रिपु चार मेरे मग में, जंजीर डाले पग में
ठाड़े हैं मोक्ष-मग में, तकरार मोसों ठानी ।।३।।

दे ज्ञान मुझको माता, इस जग से तोङूँ नाता
होवे ’सुदर्शन’ साता, नहिं जग में तेरी सानी ।।४।।