देखो जी आदीश्वर स्वामी

देखो जी आदीश्वर स्वामी कैसा ध्यान लगाया है ।
कर ऊपरि कर सुभग विराजै, आसन थिर ठहराया है ।।

जगत-विभूति भूतिसम तजकर, निजानन्द पद ध्याया है।
सुरभित श्वासा, आशा वासा, नासादृष्टि सुहाया है ।।

कंचन वरन चलै मन रंच न, सुरगिर ज्यों थिर थाया है।
जास पास अहि मोर मृगी हरि, जातिविरोध नसाया है।।

शुध उपयोग हुताशन में जिन,वसुविधि समिध जलाया है।
श्यामलि अलकावलि शिर सोहै, मानों धुआँ उड़ाया है ।।

जीवन-मरन अलाभ-लाभ जिन, तृन-मनिको सम भाया है।
सुर नर नाग नमहिं पद जाकै, `दौल' तास जस गाया है।।