घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन

घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन निशदिन,
प्रभुजी का सुमिरन करले रे ॥
प्रभु सुमिरेतैं पाप कटत हैं,
जनममरनदुख हरले रे ॥१॥

मनवचकाय लगाय चरन चित,
ज्ञान हिये विच धर ले रे ॥२॥
`दौलतराम' धर्मनौका चढ़ि,
भवसागर तैं तिर ले रे ॥३॥