म्हारा परम दिगम्बर मुनिवर आया, सब मिल दर्शन कर लो,
हाँ, सब मिल दर्शन कर लो
बार-बार आना मुश्किल है, भाव भक्ति उर भर लो
हाँ, भाव भक्ति उर भर लो ॥टेक॥
हाथ कमंडलु काठ को, पीछी पंख मयूर
विषय-वास आरम्भ सब, परिग्रह से हैं दूर
श्री वीतराग-विज्ञानी का कोई, ज्ञान हिया विच धर लो, हाँ।।१।।
एक बार कर पात्र में, अन्तराय अघ टाल
अल्प-अशन लें हो खड़े, नीरस-सरस सम्हाल
ऐसे मुनि महाव्रत धारी, तिनके चरण पकड़ लो, हाँ ।।२।।
चार गति दु:ख से टरी, आत्मस्वरूप को ध्याय
पुण्य-पाप से दूर हो, ज्ञान गुफा में आय
’सौभाग्य’ तरण तारण मुनिवर के, तारण चरण पकड़ लो,हाँ॥