तुम ही हो ज्ञाता, दृष्टा तुम्ही हो,
तुम ही जगोत्तम, शरण तुम्ही हो ॥
तुम ही हो त्यागी, तुम ही वैरागी
तुम ही हो धर्मी, सर्वज्ञ स्वामी
हो कर्म जेता, तीरथ प्रणेता
तुम ही जगोत्तम, शरण तुम्ही हो ॥
तुमही हो निश्चल, निष्काम भगवन
निर्दोष तुम हो, हे विश्वभूषण
तुम्हें त्रिविध है वन्दन हमारी
तुम ही जगोत्तम, शरण तुम्ही हो ॥
तुमही सकल हो, तुमही निकल हो
तुमहीं हजारों हो नामधारी
कोई ना तुमसा हितोपकारी
तुम ही जगोत्तम, शरण तुम्ही हो ॥
जो तिर सके ना भव सिंधु मांही
किया क्षणों में है पार तुमने
बैरी है पावन मुक्तिरमा को
तुम ही जगोत्तम, शरण तुम्ही हो ॥
जो ज्ञान निर्मल है नाथ तुममें
वही प्रगट हो वीरत्व हममें
मिले परमपद ’सौभाग्य’ हमको
तुम ही जगोत्तम, शरण तुम्ही हो ॥