पहाड़ पर ऊपर चढ़ने पर सर्वप्रथम गौतम स्वामी की टोंक मिलती है। वहाँ एक कमरा भी बना हुआ है जो यात्रियों के लिए विश्राम के काम आता है। टोंक से बायें हाथ की ओर मुड़कर पूर्व दिशा की पन्द्रह टोंकों की वंदना करनी चाहिए। ये टोंवें ही कूट कहलाती हैं । इन टोंकों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-
१. कुंथुनाथ का ज्ञानधर कूट
२. नमिनाथ का मित्रधर कूट
३. अरहनाथ का नाटक कूट
४. मल्लिनाथ का सवंल कूट
५. श्रेयांसनाथ का संकुल कूट
६. पुष्पदंत का सुप्रभ कूट
७. पद्मप्रभु का मोहन कूट
८. मुनिसुव्रतनाथ का निर्जर कूट
१०. आदिनाथ का कूट
११. शीतलनाथ का विद्युत कूट
१२. अनंतनाथ का स्वयंभू कूट
१३. संभवनाथ का धवलदत्त कूट
१४. वासुपूज्य का कूट
१५. आनंद कूट ।
इन टोंकों में भगवान चन्द्रप्रभु की टोंक बहुत ऊँची हैं। ये सभी टोंके पूर्व
दिशा में हैं। इनमें तीर्थंकरों के चरण विराजमान हैं। इन टोंकों पर जाने के
लिए मार्ग बने हुए हैं। तीर्थंकर - चरणों पर जो लेख पूर्व में खुदे हुए थे,
उनके अनुसार ये सब सं. १८२५ में प्रतिष्ठित किये गये प्रतीत होते हैं किन्तु
वर्तमान में लगभग १५ - २० वर्षों में ये चरण और प्रशस्तियाँ प्रायः बदल दी गई
हैं।
भगवान अभिनंदननाथ की टोंक से उतरकर जल मंदिर में जाते हैं। यहाँ से गौतम स्वामी की टोंक पर पहुँचते हैं। इस स्थान से चारों ओर रास्ते जाते हैं बायीं ओर कुंथुनाथ टोंक को दायीं ओर पार्श्वनाथ मंदिर को, सामने जल मंदिर और पीछे मधुवन को । अतः यहाँ पश्चिम दिशा की ओर जाकर शेष नौ टोंकों की वंदना करनी चाहिए ।