सम्मेदशिखर पर्वत की यह अंतिम और प्रमुख टोंक है। टोंक के स्थान पर अब एक सुन्दर जिनालय बन गया है। जिसमें मण्डप और गर्भगृह है। गर्भगृह में एक वेदी पर पार्श्वनाथ भगवान के कृष्ण वर्ण के चरण विराजमान हैं। चरण नौ अंगुल के हैं ।
इन टोंकों में भगवान पार्श्वनाथ की यह टोंक सबसे ऊँची है। इस टोंक पर खड़े होकर चारों ओर का मनोहर दृश्य देखते ही बनता है। मन में एक अनिर्वचनीय प्रफुल्लता भर उठती है । ऐसी आह्लादपूर्ण प्राकृतिक दृश्यावली में मन ध्यान, सामायिक और पूजा-स्तोत्र में स्वतः निमग्न हो जाता है। यहाँ आकर सब यात्री पूजन करते हैं।
ये सभी टोंके ऊँचाई में आठ फुट और चौड़ाई में भी इससे अधिक नहीं। इन टोंकों के निर्माण का प्रारंभ काल जानना कठिन है, उसी प्रकार चरणों की स्थापना इस क्षेत्र पर सबसे पहले किसने की, यह बताना भी कठिन है। वास्तव में जहाँ से तीर्थंकर मोक्ष पधारे, उस स्थान को इन्द्र ने चिन्हित कर दिया। उन्हीं स्थानों पर टोंक और चरण बना दिये गये। यह भी कहा जाता है कि सम्राट श्रेणिक ने जीर्ण टोंकों के स्थान पर भव्य टोंकों का निर्माण कराया था । बाद में समय-समय पर भक्तों ने इन टोंकों का जीर्णोद्धार कराया अथवा उनके स्थान पर नवीन टोंक बनवा दी गई। यही बात चरणों के संबंध में है। वर्तमान चरणों पर जो लेख खुदे हुए हैं, उनका तात्पर्य इतना ही है कि अमुक व्यक्ति ने प्राचीन चरणों का जीर्णोद्धार किया अथवा प्राचीन चरणों के स्थान पर नवीन चरण स्थापित कराये ।