धन्य धन्य है घड़ी आजकी

धन्य धन्य है घड़ी आजकी, जिनधुनि श्रवन परी ।
तत्त्वप्रतीत भई अब मेरे, मिथ्यादृष्टि टरी ।।

जड़तैं भिन्न लखी चिन्मूरति, चेतन स्वरस भरी ।
अहंकार ममकार बुद्धि पुनि, परमें सब परिहरी ।।१।।

पापपुण्य विधिबंध अवस्था, भासी अतिदुखभरी ।
वीतराग विज्ञानभावमय, परिनत अति विस्तरी ।।२।।

चाह-दाह विनसी वरसी पुनि, समतामेघझरी ।
बाढ़ी प्रीति निराकुल पदसों, `भागचन्द' हमरी ।।३।।