धन्य धन्य जिनवाणी माता, शरण तुम्हारी आये,
परमागम का मंथन करके, शिवपुर पथ पर धाये,
माता दर्शन तेरा रे, भविक को आनंद देता है,
हमारी नैया खेता है ॥ धन्य धन्य.. ॥
वस्तुकथंचित नित्य अनित्य, अनेकांतमय शोभे,
परद्रव्यों से भिन्न सर्वथा, स्वचतुष्टयमय शोभे,
ऐसी वस्तुसमझने से, चतुर्गति फ़ेरा कटता है,
जगत का फ़ेरा मिटता है ॥ धन्य धन्य.. ॥
नयनिश्चय व्यवहार निरूपण, मोक्ष मार्ग का करती,
वीतरागता ही मुक्ति पथ, शुभ व्यवहार उचरती,
माता तेरी सेवा से, मुक्ति का मार्ग खुलता है,
महा मिथ्यातम धुलता है ॥ धन्य धन्य.. ॥
तेरे अंचल में चेतन की, दिव्य चेतना पाते,
तेरी अनुपम लोरी क्या है, अनुभव की बरसाते,
माता तेरी वर्षा मे, निजानंद झरना झरता है,
अनुपमानंद उछलता है ॥ धन्य धन्य.. ॥
नव तत्वॊ मे छुपी हुई जो, ज्योति उसे बतलाती,
चिदानंद चैतन्य राज का, दर्शन सदा कराती,
माता तेरे दर्शन से, निजातम दर्शन होता है,
सम्यकदर्शन होता है ॥ धन्य धन्य.. ॥